शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

शहर-ए-वफ़ा में.....






शहर-ए-वफ़ा में कारोबारियाँ नहीं चलतीं
दोस्ती में होशियारियाँ नहीं चलतीं

मुहब्बत काम है बड़े ही सब्र-ओ-ताब का...
यहाँ धडकनों की बेकरारियाँ नहीं चलतीं

मै लाख़ लूँ कर जादूगरी कलामों की
उसी के सामने मेरी अश्यारियाँ नहीं चलतीं

इसी लहू-खु-ने काफिर बना रक्खा है जां
मुहब्बतों में मुख्तारियाँ नहीं चलतीं


पहुंचना है मकामें खुदाको, तो खो जा...
रूहों के साथ रस्तों की जानकारियाँ नहीं चलतीं


जबीं सजदे कबसे झुका-के गर्दन बैठा हूँ
उसी हसीं संगदिलाँ से आरियाँ नहीं चलतीं


बला क्या अब पैदाइशीं का काम करेंगी मशीने??
गुलिस्तां में बच्चियों की किलकारियाँ नहीं चलतीं


ख़ुदी को बेंच जहाँ की जो दौलताँ मिलें
मुझसे ऐसी सनम् खुद्दारियाँ नहीं चलतीं


तुमतो ख़ुदाके वास्ते जान कुछ शर्म अदा करों..
जहान में बेवफाओं के वफादारियाँ नहीं चलतीं



                                  -'जान' गोरखपुरी
                                 २७ फ़रवरी २०१५

बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

ख़ुदी....





अब हुयी है सहर-ए-ज़िंदगी
हमने करनी छोड़ दी बशर की बंदगी..

न सर झुका के मांग हकी..
नजर से नजर मिला,रख यकीं...


कदम थक गए तो दम रख गम नही..
नजरें न थके, हौसला न थके कभी..


अपना मालिक खुद बन,खुद पे रख यकीं
उसी का है ख़ुदा,जिसकी है ख़ुदी...

हुआ बहुत तलाशे सनम,हुयी बहुत बेख़ुदी
सनम अपना अहले-हिंदोस्ता,अहले-जहाँ,तोड़ दे सारी हदी...




                                                    -''जान'' गोरखपुरी
                                                       

                                                   

'कलमा'




तू मेहरबां है के खफा है मुझे पता तो लगे..
  गुलशन में बातें सुलग रहीं है..जरा हवा तो लगे..

मोहब्बतों में ऐसा जलना भी क्या?बुझना भी क्या?
    जले तो आंच न आये,बुझे तो न धुँआ लगे..

अजब हो गया है अब तो चलन मुहब्बतों का..
  मै वफ़ा करूँ तो है उसको बुरा लगे...

    वो चाहता है के मै उसके जैसा बन जाऊ...
 है जो हमारे दरमियाँ न किसी को पता लगे..

  इस साल भी बेटी न ब्याही जाएगी...
गन्ने/गल्ले का दाम देख किसान थका-थका सा लगे..

ये कैसी मेरे शहर ने की है तरक्की...
जिस शख्श को भी देखता हूँ....है बुझा-बुझा सा लगे..

सरकार में तुम्हारी वहशी दरिन्दे लार टपकाये फिरते है?
इस समाजवाद में ,समाजवादी ठगा-ठगा सा लगे..

किसने बीज बोये हैं दंगों के मेरे चमन में...
हाय!इस गुलिस्तां को किसी की नजर न ख़ुदा लगे..

तेरे काबां की मै क्या कहूँ बात जाविदाँ ए-दोस्त
मेरे मंदिर में मुझको मेरा भगवान बिल्कुल तेरे खुदा सा लगे..


तेरे अजान जैसे हो शंखनाद मेरे शिव के...
आरती मेरे घर की मुझको कलमा सा लगे...



                              -जान गोरखपुरी

                              २५ फ़रवरी २०१५

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

'तलबगार'






चाहने वालों से यूँ तो दामन गुलजार रहा
दिल मगर बस तेरा ही तलबगार रहा...

जिंदगी तूने कभी इन्साफ न किया मुझसे
उतना भी न दिया जितने का मै हक़दार रहा...

दुश्मनी  विरासत में मिलती रही यूँ के..
दोस्तों से करके वफ़ा,मै हमेशा गुनाहगार रहा...

जिंदगी इस ख़ुशी में बीती जाती है..
के तेरे गम सा न कोई गमख्वार रहा...

देख के हालत,देखने वाले आप समझ गए
तेरे सितम का जिस्म गोया इश्तहार रहा..

मुझे मालूम था  के तू कभी न आएगा...
और हर पल मुझे  तेरा ही इन्तजार रहा...

उतरना उसका दिल में ऐसा दमदार रहा..
हर एक शय में मुझको वही जल्वागार रहा..

गुजरे है कैसे मेरी?मै जानू या जाने खुदा..
किस कदर दिल हर पहर बेकरार रहा...

वाकिफ़ न हुआ ''जान'' जो  कभी,मेरे दिल के जज्बात से
सितम हाय! के..होठों पे उसके मेरा ही अशयार रहा..


                                                                  -'जान' गोरखपुरी
                                                                 २४ फ़रवरी २०१५























सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

''लालीपॉप''














लालीपॉप
दो तरह के होते है-
एक खाने वाला
और दूसरा देने वाला..
खाने वाले के
बारे में हम सभी परिचित है,
और देने वाले से
भी हम जाने-अनजाने में ही सही पर
अच्छी तरह से परिचित है...
मेरा आशय आप आगे की पंक्तियों
में समझ जायेंगे..

लालीपॉप देने की शुरुवात
हमारे जन्म से ही शुरू हो जाती है
जब माँ अपने स्तन का
झासां देकर धीरे से निप्पल-बोटल
बच्चे के मुह में लगा देती है,
अब आदमी की सहूलियत अपनी जगह है,
और आजकल की फास्टफूड और
मिलावट भरी की जिंदगी में
माँ को दूध उतरना भी
एक अचीवमेंट से कम नही है..
माँ का दूध जिस बच्चे को
नसीब हो गया वह खुद को
परम सौभाग्यशाली समझे,
और माँ स्वयं को धन्य!

हाथों का पालना-रूपी
लालीपॉप देकर
हम बच्चे के सोते ही
धीरे से उसे फिर बिस्तर
के हवाले कर देते है,
थोड़े बड़े होने पर,
एग्जाम में अच्छे मार्क
लाने के लिए
हम बच्चे को साइकिल,
मोबाइल,लैपटॉप,बाइक
इत्यादी का लालीपॉप देते रहते हैं
जिसमे से कुछ लालीपॉप
पूरे होते है,कुछ नही।



हम अपनी माशूक को
न जाने कितने और कैसे-कैसे
लालीपॉप देते रहते है,इसका कहना ही क्या...
इस संदर्भ में सबसे पॉपुलर
चाँद-तारे तोड़ने का जो लालीपॉप
है का जिक्र अगर मैंने नही किया
तो यह ‘’लालीपॉप टॉपिक’’
अधूरा ही कहलायेगा!
माशूक से आगे बढ़ते है तो,
मेरा मानना ये है की
गृहस्थ जीवन में रह रहे व्यक्ति को
अपनी बीवी को
रोज नए प्रकार का लालीपॉप देने में
पारंगत होना अनिवार्य है,
बल्कि मै तो कहता हूँ कि..
शादी से पहले इसका आल इण्डिया लेवल पर
एलेगिबिलिटी टेस्ट होना चाहिए..
जो पास हो उसी को शादी की परमीशन
मिले वर्ना कुंवारा रहे!



आजकल लालीपॉप से संबंधित
एक और चिंता का विषय है--
जो लगातार अपना कद बढाता जा रहा है
जिसे मैं नाम दूँगा..
‘’लालीपॉप संस्कृति’’ जो पश्चिम से चलकर
अब इस तरह से हमारे परिवेश में घुल गयी है कि
हमारी वर्तमान नस्लें
विकृत मानसिकता का शिकार हो रही है,
जिसका परिणाम,
छोटी-छोटी २-३ साल की
बच्चियों के साथ बलात्कार,
चोरी,नशाखोरी,हत्या,
और तरह तरह क्रिमिनल गतिविधियों
में किशोरों की लिप्तता
के रूप में सामने आ रहा है।
पिछले दशक से इस ग्राफ में अभूतपूर्व वृद्धि हुयी है,
मोबाइल,इन्टरनेट,की पहुँच ने इसे
बढ़ावा तो दिया ही है,हमारे यहाँ के गणमान्य लोग
भी कम जिम्मेदार नही है...
फिल्मो का स्तर इतना दोयम हो गया है कि
पूछिए मत..सब अपनी रोटी सेंकने में लगे हैं...
अब जहा ‘’रोस्ट’’ के होस्ट
पैसों के लिए कुछ भी कर सकते है
कितना भी नीचे गिर सकते है...
वहीँ अगर आप देखेंगे कि
इस समय बालीवुड का सबसे महगां सबसे हिट
और पॉपुलर सिंगर कभी बेहद ही फूहड़ और अश्लील
गाने गानेवाला गायक है..जिसके साथ आज बालीवुड
के दिग्गज थिरकते नजर आते है..
सनी लियोन ने तो नायिका की
नई परिभाषा ही लिख दी है..
पवन सिंह के ‘’लालिपॉप’’ ने तो
‘’लालिपॉप संस्कृति’’ को
गाँव-देहात तक पहुँचा दिया है..
भोजपुरी के दोयम दर्जे के सिंगरों ने ‘’लालीपॉप संस्कृति’’
के प्रचार-प्रसार में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है!



अगर व्यक्ति लालीपॉप देने की कला
में माहिर हो गया,तो समझ लीजिये उसे
स्वर्ग इसी पृथ्वी पे मिल गया..
जिसके साक्षात् उदाहरण
हमारे देश के नेता-बिरादरी के लोग हैं!
अब यूपी में जहाँ लैपटॉप,बेरोजगारी-भत्ता रुपी
लालीपॉप ने सपा सरकार को फिर से सिंघासन दिया,
वहीँ कालेधन,महगाई से मुक्ति
और विकास के लालीपॉप
ने मोदी सरकार के गठन में
सबसे मुख्य भूमिका अदा की..
हालहीं में दिल्ली में वाई-फाई
मुफ्त बिजली-पानी आदि के
लालीपॉप का चमत्कार आप देख ही चुके है।
माना कि इनमे से कई
लालीपॉप टाइप सपने पूरे भी हुए है...
वास्तव में लालीपॉप के फार्मूले का
सबसे मुख्य तत्व यही है कि..
छोटे-छोटे लालीपॉप के सपने
पूरे भी होने चाहिए..ताकि जनता
यानी की हम सबका लालीपॉप पर
विश्वास अनवरत बना रहे।


दुनिया का सबसे प्राचीन-पुराना
और सबसे सदाबहार
लालीपॉप है ‘’रोटी-कपड़ा और मकान’’
जिसके दम पर कांग्रेस ने पूरे
65 वर्षो से अधिक समय तक
भारत पर राज किया ..
और हाय! रे फूटी किस्मत
फिर भी ये लालीपॉप लालीपॉप ही रहा!
आजकल ये थोडा हाईटेक हो गया है अब
बिजली और पानी को भी अपनी श्रेणी
में ये शामिल करता है।



‘’आलवेज थिंक पॉजिटिव’’
ये आधुनिक युग का लालीपॉप है,
जिसके दम पर जाने कितने 2 नम्बर के
बाबाओं का कारोबार फलफूल रहा है..
जिसके समय-समय पर
उदाहरण हमारे सामने आते रहते है..
रामपाल इसकी ताजा बानगी हैं,
इतना सबकुछ होने के बावजूद
टीवी पर इस तरह के कईयों
के दर्शन रोज ही हो जाते है...
कोई कुछ करता क्यों नही?
ये भी उन बाबाओं द्वारा दिए गए
लालीपॉप का ही कमाल है..
जो कुछ करने में समर्थ
लोगों के तत्काल कोटे में जाता है!
अब ऐसा भी क्या ‘’थिंक पॉजिटिव’’
के हर चीज पर अंधविश्वास कर लिया जाये!







आजकल लालीपॉप का चलन
बिजनेस में कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है..
छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी कंपनिया
लगभग हर उत्पाद को ‘’लालीपॉप’’ के साथ
उतार रही है ..और इन लालीपॉपों में अकसर
सबसे घटिया सामग्री बेचीं जा रही है...
और ऐसी ऐसी स्कीम है की अच्छे-अच्छे
जागरूक इन्सान भी फंस जाये...
फिर तो आम उपभोक्ता का कहना ही क्या..
वह तो एक दिन में करोड़पति बनने के लालीपॉप
को भी कैश करने में भी विश्वास रखता है!
‘’50 रूपये के चूरन में बनिए करोड़पति’’
फ्री के लाइटर के साथ पाइए फ़्रिज,मोटरसाइकिल,कार
बस आपको स्क्रेच करना है,500 रूपये का कूपन।
इनाम की गारंटी,इनाम न निकलने पे पैसे वापस.
क्या साहेब...क्या क्या बताये, और क्या न बताये
अब तो लगभग रोज के ही
अखबार में निकलता है कि....
‘’लक्की ड्रा’’ के लालीपॉप के नाम पे
इतनी राशी का चूना लगाया..
ई-मेल में लाखों रूपये जीतने का
लालीपॉप तो अब आम बात
हो चुकी है पर फिर भी लोग ऐसे
लालीपॉप में फँस जाते हैं!
यही तो है  लालीपॉप की महिमा...
जिसका मै गुणगान कर रहा हूँ..
और बहुत कुछ बाकि है कहने को..
पर फिर कभी।
वैसे एक बात तो सच है जिन्दा रहने के लिए
लालीपॉप का होना बहुत जरूरी है..
आखिर ये भी एक लालीपॉप ही तो है कि...
कभी न कभी उजाला मिटा देगा अँधेरे को हमेशा के लिए!



                                   -‘’कृष्णा मिश्रा’’

                                   २३ फरवरी २०१५

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

मेरी दिलरुबा..



मेरी दिलरुबा..
आँखों से बोलने वाली..!
चुप-चुप गुप-चुप..
दिल के ताले खोलने वाली..!


तितली सी लहरा के..
फूलों सी मुस्कुरा के..
शाखों सी बलखा के
संग हवा के डोलने वाली...!
मेरी दिलरुबा..
आँखों से बोलने वाली..!


सुबह जिसके दामन में..
दोपहर गुस्सा उसका..
शाम बैठी जिसके पलकों पे..
रात जुल्फ का पहरा..
अंगडाई उसकी...
रात की नींदें तोड़ने वाली..!
मेरी दिलरुबा..
आँखों से बोलने वाली..!


रंग जिसकी अदाए हैं..
जादू जिसका रूप..
खुशबू जिस्म है जिसका..
छुई-मुई सा मेरा महबूब..
नमकीन सी बातें उसकी
शहद घोलने वाली...!
मेरी दिलरुबा..
आँखों से बोलने वाली..!
चुप-चुप गुप-चुप..
दिल के ताले खोलने वाली..!

                -जान
              अप्रैल २००९
         पुरानी डायरी के झरोखे से

जाइये आपका...







जाइये आपका एतबार हम नही करते...
संगदिलो से प्यार हम नही करते।



अब जो बेरुखी है,तो निभाइए शौक से...
वख्त देखकर प्यार हम नही करते।



‘‘इश्क़ है इश्क़’’ है तो हमेशा रहेगा...
आज नगद कल उधार हम नही करते।



शतरंज की बाजी की तरह,तुमने चलाये है रिश्तें
माफ़ कीजिये,रिश्तो में कारोबार हम नही करते।



मेरे हिस्से की वफ़ा भी बरसेगी एक दिन...
बेमौसम बादलों का इंतज़ार हम नही करते।

                         
                                -जान

                             २० फरवरी २०१५

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

''अभिनय''






अभिनय भरी इस दुनिया में
पाने के लिए प्रिय वो हृदय
करना पड़ता है अभिनय..
करना ही होगा अभिनय।



दुनियाँ का नियम ये तय
जितना अच्छा जिसका अभिनय
उतना विस्तृत उसका संचय
करना पड़ता है अभिनय..
करना ही होगा अभिनय।



भाव-भंगिमाओं के अपने ताने-बाने
भेद न इनका कोई जाने
हृदय की जाने केवल हृदय
इस दुनियाँ का नियम ये तय
करना पड़ता है अभिनय..
करना ही होगा अभिनय।




जब भी मै अभिनय करने जाऊ
भेद सब खुल ही जाये..
शब्द न मिले,भावहीन खुद को मै पाऊ
अंतर्मन को चुनूँ?
या किरदार नया निभाऊ?
पर तो,इस दुनिया का नियम ये तय
करना पड़ता है अभिनय..
करना ही होगा अभिनय।



रह न जाये उन्माद,दुःख-सुख भय
मै भी तब रहे न मै
होता है जब सत्य का उदय
हे निर्विकार !  हे निर्भय !
हर लो अपने,मेरे सारे अभिनय..!!
हे निर्विकार !  हे निर्भय !
हर लो अपने,मेरे सारे अभिनय..!!



                                                  -कृष्णा मिश्रा















बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

तुमसे मिलकर......




तुमसे मिलकर ये एहसास होता है..
जैसे खुदा मेरे पास होता है।


तेरे ही नगमे गाता हूँ
तेरी ही यादों में खो जाता हूँ
जब कभी मेरा दिल.......उदास होता है।

तुमसे मिलकर ये एहसास होता है..
जैसे खुदा मेरे पास होता है।


यूँ तो मिलता हूँ मै अक्सर..
फूलों से..नजारों से..
कभी खामोश,कभी कुछ कहते
चाँद और सितारों से...
पर तेरा ही जलवा है....
जो हर बार...कुछ ख़ास होता है।


तुमसे मिलकर ये एहसास होता है..
जैसे खुदा मेरे पास होता है।



                    -जान
                १७ अगस्त २००२

              पुरानी डायरी के झरोखे से

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

हे शिव! जब तुम हो अनंत...






ॐकार, हूँकार
साकार,निराकार
शून्य,अशून्य
दिग,दिगम्बर
आवात,निर्वात
छड. छड...
कण कण..में व्याप्त
हे शिव!,हे डमरूधर!
हे शिव!,हे डमरूधर!


अशब्द अगम
शब्द प्रथम
तुम्हारे कंठ का हुंकार है।
ये सृष्टि समस्त
तुम्हारी नाभि का विस्तार है।
सहस्त्र-सहस्त्र चन्द्र
कोटि-कोटि अरुण तुम्हारे भाल हैं।
जटा तुम्हारी भव-उदभव मृरीचिका
लपेटे तम-तारुण भागीरथी सुशोभित कपाल है।
हे भैरव!,हे गंगाधर!
हे भैरव!,हे गंगाधर!




जीवन-मृत्यु
श्वाश-प्रश्वाश के सार हैं।
लय-प्रलय
त्रिनेत्र के आहार हैं।
तुम ही विलायक
तुम ही विलेय
विलीन तुममे त्राण-प्राण है।
तुम ही चित्र,चित्रित भी तुम्ही
तुमसा न चित्रकार है
हे महाकाल!,हे मुक्तेश्वर!

हे महाकाल!,हे मुक्तेश्वर!






भूत-भविष्य
दृश्य-अदृश्य कलाए हैं।
कोलाहल,हलाहल
कंठ मालाए हैं।
ग्रह-नक्षत्र
रुद्राक्ष-रमण भुजाए हैं।
बाघाम्बर,श्वेताम्बर
अनंत-मेखला अरुणीमाए हैं।
नित नवीन चरण हो रहा प्रसार है।
जब तुम हो अनंत
अनंत का यात्री नाथ मै,
पथिक हूँ तुम्हारा
हे प्रेमेश्वर!,हे भूतेश्वर!
हे प्रेमेश्वर!,हे भूतेश्वर!




              -कृष्णा मिश्रा

          महाशिवरात्रि,१७ फ़रवरी २०१५

सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

''खुदा-न-खास्ता हो''




खुदा-न-खास्ता हो
के गम को,तेरे दामन से कोई वास्ता हो।

सादगी तेरे हुस्न ने पाई बहुत
वादी-ए-गुलशन में जैसे गुलाब कोई हँसता हो।


मेरी किस्मत में कहाँ?तेरी निगाह-ए-उल्फत
खुशियों को क्यों मुझसे राब्ता हो।


तेरे बगैर लौट आये मेरी खुशियाँ
आप ही बताओ गर कोई ऐसा रास्ता हो।


ये जो कहते है लोग मुझे,क्या गलत कहते है?
क्या कहेगा उसे कोई,जो हर शू में तुझे तलाशता हो।


देखता आता हूँ,एक ही सपना उम्र-ए-रफ़्ता
बंधी है मेरे आँख पे पट्टी,और उस बुत को तराशता हो।


          
                             -जान
                           अप्रैल २००२
                                    ‘’पुरानी डायरी के झरोखे से’’

आफ़ताब फेंक दूँ..!!





कब तक लड़ता रहूँगा मै खुद से
सोचता हूँ अपने चेहरे का ये नकाब फेंक दूँ..!



सोचते थे जैसा....
दुनिया में वैसा.....कुछ भी नही
इक उम्र जिए जिसके सहारे.......
दिल के सारे वो ख्वाब फेंक दूँ..!



तुम हो ही नही कहीं शायद
कब तक तुमको ढूंढा करूँ.....
उठाते गिरते है ज़ेहन में जो..
ये सवालो-जवाब फेंक दूँ...!





सच्चे दिल से जो मांगों...
मिल ही जाता है,
लिखने वाले ने क्या खूब लिखा है
घर से उठाकर मै ये किताब फेंक दूँ..!



अँधेरे में ही जब जीना है
और फिर मर जाना है गुमनाम
खिड़की से मैं अपने
आफ़ताब फेंक दूँ..!!



                     -जान

योगदान देने वाला व्यक्ति