तुम्हारे नाम को जब से सीने में दफ्न किया है,
तब से मेरे मन की मिट्टी में एक अंकुर फूटने को बेकरार है.
ये रोज़ रोज़ की बेकार की दुनियादारी मुझे
याद दिलाती है तुम्हारा भोलापन,
काश के मै थाम लेता तुम्हारा दामन ,
और फिर ना होती ये खुद से खुद की रोज़ की लड़ाई।
तब से मेरे मन की मिट्टी में एक अंकुर फूटने को बेकरार है.
ये रोज़ रोज़ की बेकार की दुनियादारी मुझे
याद दिलाती है तुम्हारा भोलापन,
काश के मै थाम लेता तुम्हारा दामन ,
और फिर ना होती ये खुद से खुद की रोज़ की लड़ाई।