जो न सोचा था कभी,वो भी किया किये
हम सनम तेरे लिये,मर-मर जिया किये
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तेरी आँखों से पी के आई जवानियाँ
दम निकलता ही रहा, पर हम पिया किये
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आँख हरपल राह तकती ही रही सनम..
फर्श पलकों को किये,दिल को दिया किये
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आदतन हम कुछ किसी से मांग ना सके
और हिस्से जो लगा वो भी दिया किये
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जख्म को अपने कभी मर हम न मिल सका
गैर के जख्मों को हम तो बस सिया किये
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(c) ‘जान’ गोरखपुरी
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''पुरानी डायरी के झरोखे से''
१७ मार्च २००६
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