खुशबू लुटा गुल चमन में बिखर गया
डाली फलों से भरी झुक सजर गया
सजदा दिवाना दरे इश्क़ कर गया
है शर्म आती तरक्की पे इस ख़ुदा
जब भूख से अन्नदाता है मर गया
कानून कछुआ तेरी जीत हार क्या??
जो फैसले तक, हो बूढ़ा बशर गया
वो शक्स जादू सा नक्सा परिनुमा
देख्ते ही दिल में अजब सा उतर गया
मै मस्त उसके तसव्वुर में इस कदर
वो बारहा दर आ मेरे गुजर गया
जो इश्क़ हमने किया बेहिसाब था
उसको किया कैद अब बाबहर गया
लो सीख अब ‘जान’ तुम भी
हुनर-ए-चुप
मोहब्बतों से अगर दिल है भर गया
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(c) ‘जान’
गोरखपुरी
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