इक दीवाने को..
चाहिए बस दीदार...
और क्या चाहिए!
सारी उम्र
करता रहूँ इन्तजार..
और क्या चाहिए!
वादे-पे-वादा कर और भूल जा
खाता रहूँ फरेब बार बार
और क्या चाहिए!
तुझसे नजर मिले
हो तू शर्मसार...
और क्या चाहिए!
तू अपनी जिद न छोड़,न मै अपनी
होती रहे तकरार..
और क्या चाहिए!
छुप जा हुस्न की झलक दिखाके
दिल मेरा रहे बेकरार...
और क्या चाहिए!
जख्म दर जख्म देता रह
जख्म मेरा रहे सदाबहार
और क्या चाहिए!
तेरा अक्स रहता है हरपल मेरे साथ
तुझसा कहाँ कोई गमख्वार
और क्या चाहिए!
मिलता है सदा,पुरअन्दाज-ओ-इत़ाब से (पुरअंदाज-ओ-इत़ाब से= नये अंदाज और गुस्से से)
दिल का है वो बड़ा दिलदार...
और क्या चाहिए!
ता-उम्र तड़पायेगा,जां लेकर जायेगा
इश्क़ का जहर बड़ा असरदार!
और क्या चाहिए!
तेरे आँखों का मयकदा सलामत रहे
चलता रहें हुस्न का कारोबार
और क्या चाहिए!
‘’पुरानी डायरी के झरोखे से’’
१७ सितम्बर २००२
-‘जान’ गोरखपुरी
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