रविवार, 12 जुलाई 2015

बुधवार, 1 जुलाई 2015

अब जो जायेंगे...





अब जो जायेंगे उस गली तो सबा छेड़ेगी                                        (सबा = प्रभात समीर)
वारे उल्फ़त! मुझको मेरी ही वफ़ा छेड़ेगी
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जिसको आँखों में भरके फिरते थे हम इतराते
हाय जालिम तेरी कसम वो अदा छेड़ेगी
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जो गुजरते हर एक दर पे थी हमने मांगी
राह में मिलके मुझसे वो हर दुआ छेड़ेगी
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वो जो बातें ख्यालों की ही रह गई बस होकर
बेसबब बेवख्त आ मुद्दा बारहा छेड़ेगी                                                (बारहा = बार-बार)
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सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े
हाँ फजाओ में गूंजती वो सदा छेड़ेगी
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चूम के हाथ अपने  हवाओं के बोसे देना
अब तो सांसों की आती जाती हवा छेड़ेगी
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था नजर आया जिनमे वो ’जान’ सौ रंगों में
अरगनी से लिपटी पड़ी वो कबा छेड़ेगी                                                 (कबा = कपड़े)



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मौलिक व् अप्रकाशित (c)"जान" गोरखपुरी
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