के फिर हम ना दूर हो..
कॊई कर सके ना जुदा..
के हम ना मजबूर हो.
किसी दिन....यूँ मिलो..
के रूह एक हो चले...
एक लौ में जलें..
जैसे दो दिए...
हाँ दिल में वो सुरूर हो..
कोई कर सके ना जुदा....
हम ना मजबूर हो.
कभी मुझे....
खुद मे युँ उतार लो ....
जैसे लहर लहर मे चूर हो...
कभी मुझमें...युँ बस जाओ..
जैसे जिस्म से ना रूह दुर हो..
कोई कर सके ना जुदा..
के हम ना मजबूर हो
-'जान'
सितम्बर २०११
''पुरानी डायरी के झरोखे से''
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