गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

''जब याद आये''


मेरा फ़साना जब याद आये
दिन वो पुराना जब याद आये
बस इक आवाज दे देना..
जब भी तुम्हे ये दीवाना याद आये...

माना की ए-जान तुमसे खफा हूँ..
फिर भी मै तस्वीर-ए-वफ़ा हूँ
तुम पास आके बस लिपट जाना
मेरे प्यार का तराना जब याद आये...

मिलने को तो तुमको लोग बहुत मिल जायेंगे
पर खाक क्या तुमको वो मेरी तरह  चाहेंगे
तुम शरमा के बस मुझमे सिमट जाना 
अच्छा सा बहाना जब याद आये....

आशिक हूँ तुम्हारा जलना मेरा काम है
अश्क-ओ-रश्क तो मोहब्बत का दूजा नाम है
तुम शम्मां अपनी जला जाना 
परवाना तुम्हारा जब याद आये ....

मै रातो को उठ उठ कर अब भी रोता हूँ
कुछ पता नही कब जगता हूँ कब सोता हूँ
तुम आके मुझे सुला जाना,
 ''जान'' तुम्हारा जब याद आये...




                                    -''जान''
                               ५ फरवरी १५

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