अब गाऊ मै कौन सा राग
विरह ने भी तेरी दिया मुझको त्याग
''अब गाऊ मै कौन सा राग''
आनंद है कोई ?कैसी ये अनिभूत
जिससे हुआ हूँ मैं अभिभूत
तुम ही हो, तुम्ही हो
जाने किस भेस में आये हो;
जागा प्राण में ये कैसा उन्माद...
अब गाऊ मै कौन सा राग।
उदीप्त ,हुआ हृदय में कैसा ये दीप
आलोक है फैला,हर दिशा में प्रदीप ।
बजा ये कैसा सुर अंतर में?
बांध न पाऊ जिसको मैं स्वर में।
यथा,व्यथा, सब गयी भाग.…
अब गाऊ मै कौन सा राग।
फिरू लय में इस पागल सा
खोया, खुद में विह्वल सा;
पिरोऊ, मन मे मन के मोती
जोडूं ज्योत में तुम्हारे ,अपनी ज्योति
लागी ये कैसी लाग....
अब गाऊ मै कौन सा राग ।
-कृष्णा मिश्रा
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