शनिवार, 24 जनवरी 2015

'दर्द'

सुबह से दर्द दरवाज़े पे खड़ा है.. 
 भिखारी की तरह ;
आँसुओ के मोती मांग रहा है,
 जब देखो मुँह उठाए चला आता है !
दिल में हाथ डाला तो छुट्टा नहीं था। 

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