गुरुवार, 12 मार्च 2015

'मेहमान'


ना हाथों में कंगन,
न पैरों में पायल,
ना कानो में बाली,
न माथे पे बिंदियाँ
कुदरत ने सजाया है उसे!!


न बनावट,ना सजावट
न दिखावट,ना मिलावट
गाँव की मिट्टी ने सवारा है उसे!!



ये बांकपन ,ये लड़कपन
चंचल अदाओं में भोलापन,
जवानी के चेहरे में....हँसता हुआ बचपन!!
वख्त ने जैसे....संजोया है उसे!!


उसकी बातें सुनती हैं तितलियाँ
उसीके गीत गाती हैं खामोशियाँ
हँसी पे जिसकी फ़सल लेती है अंगड़ाईयाँ
उसके बगैर,बहारों में है वीरानियाँ..!!
फ़िजाओं..हवाओं...घटाओं...
हर किसी से है दोस्ती उसकी
हर एक ने समझा है उसे!!


कितना खुबसूरत,कितना दिलकश
कितना प्यारा है वो अनजान!
जो है मेरी दुनिया में..
आया चन्द दिनों का मेहमान!!
क्या जाने वो......
किसी ने कितना सोचा है उसे!!



                                    -जान गोरखपुरी

                                       जून २००५

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