सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

'ॐ'



दिल में कभी उसके मेरा घर न हुआ,
मुझको ही मोहब्बत का हुनर न हुआ।

परदेश में कभी सुकून का  दो-पहर न हुआ,
दिन हुए बहुत माँ की गोद में सर न हुआ... !

दौलते-दुनिया  बहुत मिल जाती 'जान'
दुनियादारी में तेरा ही कभी गुजर न हुआ..!

मंजूर कभी झुकाना सर न हुआ..
मुझको तेरे दर के जैसा कोई दर न हुआ..!

जिसकी कलम के मिसरे हैं ये कायनात-ओ-कहकशां
इलाही तेरे जैसा कोई सुखनवर न हुआ..!!


                                                      -'जान'
                                           ०९ फरवरी २०१५

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

योगदान देने वाला व्यक्ति