दिल में कभी उसके मेरा घर न हुआ,
मुझको ही मोहब्बत का हुनर न हुआ।
परदेश में कभी सुकून का दो-पहर न हुआ,
दिन हुए बहुत माँ की गोद में सर न हुआ... !
दौलते-दुनिया बहुत मिल जाती 'जान'
दुनियादारी में तेरा ही कभी गुजर न हुआ..!
मंजूर कभी झुकाना सर न हुआ..
मुझको तेरे दर के जैसा कोई दर न हुआ..!
जिसकी कलम के मिसरे हैं ये कायनात-ओ-कहकशां
इलाही तेरे जैसा कोई सुखनवर न हुआ..!!
-'जान'
०९ फरवरी २०१५
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