क्या कायनात इधर की उधर हो गयी
आज हमपे,उनकी नजर हो गयी।
क्या ठाठ से सोते थे साहेबजादे,
रात ये कैसे,आँखों-आँखों में बसर हो गयी।
करते थे इश्क से तौबा किस कदर,
आज ये रहगुजर अपनी डगर हो गयी।
तन्हाइयां अब हमसफ़र हो गयी।
बैठे-बैठे खोने लगे,जगते हुए सोने लगे
जबसे हमपे,उनकी मेहर हो गयी।
हसने लगे है अब तो लोग भी हम पर
लो कानों-कान इनको भी खबर हो गयी।
''पुरानी डायरी के झरोखे से ''
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