तेरी आँखों में अब वो इताब कहाँ
उठ जाये तो क़यामत ,झुक जाये तो क़यामत
तेरी पलकों का जवाब कहाँ ।
अजल से अबद तक है कायम
और कहीं ऐसा शबाब कहाँ
हर रोज जुड़ती है ,नए क़त्ल की दास्तां
तेरी आँखों सी अजब किताब कहाँ ।
तेरे सितम-ओ-करम को रखते है,
सर-आँखों पे मुस्कुराकर
माना तुमसा कोई नहीं,
पर हमसा भी दिल का नवाब कहाँ ।
वाह रे!उनके रंग में
खुद को रँगने की जुस्तजू
और कुछ नहीं ना सही,
मुझसे किसी के ख़्वाब कहाँ।
-'जान'
''पुरानी डॉयरी के झरोखे से' मई०५
-'जान'
''पुरानी डॉयरी के झरोखे से' मई०५
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