रविवार, 19 अप्रैल 2015

ये हसीन काम..




हाँ ये हसीन  काम हमने ही किया
खुद को तो तमाम हमने ही किया


आगाजे-बरबादी तेरा थी करम
अंजाम इंसराम  हमने  ही किया                            (इंसराम = व्यवस्था)

रोज ये कहना कि न आयेंगे पर
कू पे तेरी शाम हमने ही किया                                 (कू= गली/दर)

हुस्न पे यूँ सनम न हो तू बदगुमां
जहाँ में तेरा नाम हमने ही किया

हर सुबह न मुँह को लगायेंगे कभी
और शाम-इंतजाम हमने ही किया                  

कौन गुजरता वरना ’जान’ यां से
इन मिसाल को गाम हमने ही किया

किसकी थी मजाल तंज जो करता
खुद को ‘जान’ निलाम हमने ही किया



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              (c) जान गोरखपुरी
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                  १९ अप्रैल २०१५

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