शहर-ए-वफ़ा में कारोबारियाँ नहीं चलतीं
दोस्ती में होशियारियाँ नहीं चलतीं
मुहब्बत काम है बड़े ही सब्र-ओ-ताब का...
यहाँ धडकनों की बेकरारियाँ नहीं चलतीं
मै लाख़ लूँ कर जादूगरी कलामों की
उसी के सामने मेरी अश्यारियाँ नहीं चलतीं
इसी लहू-खु-ने काफिर बना रक्खा है जां
मुहब्बतों में मुख्तारियाँ नहीं चलतीं
पहुंचना है मकामें खुदाको, तो खो जा...
रूहों के साथ रस्तों की जानकारियाँ नहीं चलतीं
जबीं सजदे कबसे झुका-के गर्दन बैठा हूँ
उसी हसीं संगदिलाँ से आरियाँ नहीं चलतीं
बला क्या अब पैदाइशीं का काम करेंगी मशीने??
गुलिस्तां में बच्चियों की किलकारियाँ नहीं चलतीं
ख़ुदी को बेंच जहाँ की जो दौलताँ मिलें
मुझसे ऐसी सनम् खुद्दारियाँ नहीं चलतीं
तुमतो ख़ुदाके वास्ते ‘जान’ कुछ शर्म अदा
करों..
जहान में बेवफाओं के वफादारियाँ नहीं चलतीं
-'जान' गोरखपुरी
२७ फ़रवरी २०१५
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