अब हुयी है सहर-ए-ज़िंदगी
हमने करनी छोड़ दी बशर की बंदगी..
न सर झुका के मांग हकी..
नजर से नजर मिला,रख यकीं...
कदम थक गए तो दम रख गम नही..
नजरें न थके, हौसला न थके कभी..
अपना मालिक खुद बन,खुद पे रख यकीं
उसी का है ख़ुदा,जिसकी है ख़ुदी...
हुआ बहुत तलाशे सनम,हुयी बहुत बेख़ुदी
सनम अपना अहले-हिंदोस्ता,अहले-जहाँ,तोड़ दे सारी हदी...
-''जान'' गोरखपुरी
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