ज्ञान का ..
मुझे शब्दों का
आहार दो..
हे माँ शारदे!
अपने चरणों में
मुझे दुलार दो..
विचलित मन मेरा
यथा-व्यथा के
टंकारों से..
पतित न हो जाये
क्षणभंगुर अहंकारो से..
अपनी वीणा को
अपनी वीणा को
करो झंकृत माँ..
मन के अंधेरों से
मुझे उबार लो..
हे माँ शारदे!
अपने चरणों में
मुझे दुलार दो..
न तम में
मै भटकूँ..
न किसी की
निगाह में खटकूँ..
रक्खूँ सदा समदृष्टि
चाहे बरसे फ़ुहार
या हो मेघवृष्टि..
मुझे हृदय की
न्यूनता से तार दो..
हे माँ शारदे!
अपने चरणों में
मुझे दुलार दो..
जब भी लिखूँ
मूक हो जाऊं
गर व्यर्थ मै बकूँ..
मेरी आवाज़ में सुधा
लेखनी में
गंगा का सार दो..
हे माँ शारदे!
अपने चरणों में
मुझे दुलार दो..
-‘कृष्णा
मिश्रा’
२७ फ़रवरी १५
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