''लाग लगी फागुन की
रंग कान्हा के हाथ !
जिसकी चुनरी रंग दी
धन धन उसके भाग'' !!
आ सजना फागुन में
चुनर ढाप मै रख लूँ !
न मै रंगू गैर को..
ना तोहे रंगन दूँ..!!
छाप तिलक सब छीनी,मोहे रंगवा लगाईके!
रंगवा लगाइके,मोहे अंगवा लगाइके!!
छाप तिलक सब छीनी,मोहे रंगवा लगाईके!!
प्रेमवटी की गुझिया खिलाईके!
मतवारी कर दीन्ही,मोहे भंगवा मिलाईके!!
गोरी गोरी बइयां,धानी री चुनरियाँ!
बसन्ती कर दीन्ही,मोहे संगवा भिगाईके!!
बल-बल जाऊं मै,तोरे रंगरेजवा!
अपनी सी रंग दीन्ही,मोहे अंगवा लगाईके!!
राधे-श्याम को बल बल जाऊं!
मोहे सुहागन कीन्ही,प्रेम रंगमा डूबाईके!!
-कृष्णा मिश्रा
होली 06 मार्च २०१५
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