'सृजन'
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बुधवार, 16 सितंबर 2015
गुरुवार, 13 अगस्त 2015
शुक्रवार, 7 अगस्त 2015
रविवार, 12 जुलाई 2015
बुधवार, 1 जुलाई 2015
अब जो जायेंगे...
अब जो जायेंगे उस गली तो सबा छेड़ेगी (सबा = प्रभात समीर)
वारे उल्फ़त! मुझको मेरी ही वफ़ा छेड़ेगी
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जिसको आँखों में भरके फिरते थे हम इतराते
हाय जालिम तेरी कसम वो अदा छेड़ेगी
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जो गुजरते हर एक दर पे थी हमने मांगी
राह में मिलके मुझसे वो हर दुआ छेड़ेगी
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वो जो बातें ख्यालों की ही रह गई बस होकर
बेसबब बेवख्त आ मुद्दा बारहा छेड़ेगी (बारहा = बार-बार)
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सुनते ही जिसको तुम चले आते थे दौड़े
हाँ फजाओ में गूंजती वो सदा छेड़ेगी
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चूम के हाथ अपने हवाओं के बोसे देना
अब तो सांसों की आती जाती हवा छेड़ेगी
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था नजर आया जिनमे वो ’जान’ सौ रंगों में
अरगनी से लिपटी पड़ी वो कबा छेड़ेगी (कबा = कपड़े)
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मौलिक व् अप्रकाशित (c)"जान" गोरखपुरी
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शुक्रवार, 26 जून 2015
तिश्नलब हो के..
तिश्नलब हो के समंदर नही देखे जाते (तिश्नालब= प्यासा)
फ़ासले पास में रहकर नहीं देखे जाते
इश्क मुझको हो न जाये,न उठा यूँ पर्दा
ख़्वाब आँखों में उतरकर नहीं देखे जाते
जबसे हमने है किया उनसे सवालाते वस्ल
खिड़कियाँ बंद हैं पैकर नहीं देखे जाते (पैकर= चेहरा/मुख)
बेवफा लाख ही ठहरा वो प अबभी मुझसे
उसकी राहों के ये पत्थर नहीं देखे जाते
सामना मौत से पल-पल हो अगरचे मंजूर
गैर की बांह में दिलबर नहीं देखे जाते
हर कदम जिसके लिए हमने दुआए माँगी
उसके हाथों में ही खंजर नही देखे जाते
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(C) "जान" गोरखपुरी
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सोमवार, 22 जून 2015
मरासिम...
ये हैं मरासिम* उसकी मेरी ही निगाह के (मरासिम = रस्में)
तामीरे-कायनात* है जिसका ग़वाह के (तामीरे-कायनात = सृष्टि का निर्माण)
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सजदा करूँ मैं दर पे तेरी गाह गाह के
पाया खुदा को मैंने तो तुमको ही चाह के
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हाँ इस फ़कीरी में भी है रुतबा-ए-शाह के
यारब मै तो हूँ साए में तेरी निगाह के
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जो वो फ़रिश्ता गुजरे तो पा* खुद-ब-खुद लें चूम (पा = पाँव)
बिखरे पडे हैं फूल से हम उसकी राह के
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छूटा चुराके दिलको वबाले-जहाँ* से मैं
ऐ “जान” हम हुए हैं मुरीद इस गुनाह के
(वबाले-जहाँ = दुनिया भर के बवाल से) सही शब्द वबाल है जो अब आम बोल चाल में बवाल बोला जाने लगा है!
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(c) "जान" गोरखपुरी
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